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श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया प्रारम्भ- 03:01 प्रातः
श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया समाप्त- 04:20 प्रातः (01.08.2022)

हरियाली तीज

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला हरियाली तीज अपना विशेष महत्व रखता है। श्रावण मास को भगवान शिव शंकर का सबसे प्रिय मास होने के कारण इस व्रत का महत्व विशेष हो जाता है।

प्रत्येक वर्ष के श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाए जाने वाला यह व्रत अंग्रेजी मास के अनुसार लगभग जुलाई अथवा अगस्त में आता है।

यद्यपि पूर्ण वर्ष में महिलाएं अपने सुहाग एवं संतान के लिए कई व्रत का पालन करती है परंतु सुहाग के आरोग्य एवं लंबी आयु के लिए मनाया जाने वाला हरियाली तीज सनातन धर्म के अनुसार अपना विशेष महत्व रखता है।

इस व्रत का पालन कुंवारी कन्याए भी, भगवान शिव के सदृश्य वर प्राप्त करने के लिए करती हैं तथा यह मान्यता है कि उन्हें मनोवांछित जीवनसाथी की अवश्य प्राप्ति होती है।

यह मान्यता लंबे समय से चली आ रही है कि भगवान शिव तथा जगत जननी माता पार्वती का पुनर्मिलन आज ही के दिन हुआ था। यह अवसर सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए अत्यधिक महत्व रखता है। स्त्रियां अपने ससुराल से मायके आकर उन्मुक्त ढंग से सज संवर कर, व्रत तथा पूजन करती है। आज के दिन झूला भूलने की प्रथा भी व्रत को आनंदमय बना देती है।

  • व्रत का विज्ञान व महत्व

    सनातन धर्म में प्रत्येक व्रत एवं त्योहार के पीछे विशिष्ट सोच एवं विज्ञान अवश्य पाया जाता है। यह व्रत तब मनाया जाता है जब मातृ रूपा पृथ्वी ग्रीष्म ऋतु के तपन से व्याकुल हो वर्षा ऋतु से अपनी प्यास लगभग बुझा चुकी होती है तथा संपूर्ण पृथ्वी वासियों को आहार हेतु नाना प्रकार के अन्न, फल, फूल का सृजन करती है।

    पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को ही भगवान शिव शंकर तथा माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था।

    महा शिव पुराण के अनुसार पार्वती रूप में माता ने हजारों हजार वर्ष तक भगवान शिव की तपस्या की थी तथा आज ही के दिन भगवान भूत भावन प्रसन्न होकर माता को अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किए थे।

    अविनाशी भगवान शिव ने माता को सर्वदा सौभाग्यवती होने का वर भी प्रदान किया था। स्त्रियां सात जन्मो तक सौभाग्यवती रहने के लिए आज का व्रत धारण करती है।

  • व्रत की मान्यताएं

    हरियाली तीज के अवसर पर अधिकांशतः नवविवाहित स्त्रियां अपने मायके आती है। विवाह के बाद प्रथम सावन को मायके में मनाने का प्राचीन रिवाज आज भी बहुत प्रदेशों में देखा जाता है।

    विवाहित स्त्रियां एवं नव युवतियां तीज की पूर्व संध्या पर मेंहदी द्वारा भिन्न भिन्न प्रकार के आकर्षक डिजाइन को हाथों में बनवा कर श्रृंगार करती हैं। जो अत्यंत मनमोहक होते हैं। मेहंदी के अतिरिक्त आलता तथा अन्य सुहाग के प्रतीक से स्वयं को सुशोभित करती हैं।

    आज के दिन स्त्रियां नए वस्त्र धारण करने के साथ-साथ सभी प्रकार से श्रृंगार कर माता पार्वती की पूजा करते हैं करती हैं। भिन्न भिन्न स्थान पर पूजा के तरीके भी अलग-अलग प्रयोग किए जाते हैं।

  • विधि

    सर्वप्रथम घर के प्रत्येक कोने की अच्छे से सफाई करने के बाद तोरण से घर को सजाया जाना चाहिए। तत्पश्चात साफ मिट्टी अथवा मातृका में गंगाजल डालकर प्रतीकात्मक रूप से भगवान शिव माता पार्वती भगवान गणेश आदि की मूर्ति बनानी चाहिए।

    मूर्ति के निर्माण के बाद सभी पूजा सामग्री को थाली में लेकर कुछ ताजे फूल के साथ षोडशोपचार द्वारा पूजन करना चाहिए।

    इस दिन कीर्तन भजन तथा रात्रि जागरण भी विशेष फल प्रदान करने वाला कहा जाता है