basant-panchami

बसंत पंचमी

प्रत्येक वर्ष के माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाए जाने वाला यह त्यौहार बसंत पंचमी की रूप में जाना जाता है। मौलिक रूप से बसंत पंचमी स्वयं के अंदर के आलस्य, प्रमाद, ईर्ष्या, भोग एवं सभी नकारात्मक प्रवृत्तियों को त्याग कर ज्ञान एवं अंतःकरण के प्रकाश को प्रकाशित करने का सर्वोत्तम समय कहा गया है। यद्यपि सामान्य रूप से इस दिन माता सरस्वती जिन्हें विद्या, ज्ञान , वाणी अंतः करण की शुद्धता आदि की अधिष्ठात्री माना जाता है का पूजन किया जाता है। बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाने वाला यह त्योहार मूलतः अपने अंदर पूर्ण वैज्ञानिकता को समाहित किए हुए है। यह तिथि शरद ऋतु के समापन की जहां सूचना प्रदान करती है वही बसंत के आगमन की सूचना भी देती है। अर्थात शरद ऋतु में पृथ्वी की शांति अग्नि पुनः प्रज्वलित होने की दिशा में जैसे-जैसे सक्रिय होती है वैसे -वैसे ही समस्त जीवात्मा के अंदर सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा का संचय बढ़ने के साथ-साथ क्रियाशीलता का बढ़ जाना स्वाभाविक होता है। आज के दिन ज्ञान, विज्ञान, विद्या अध्ययन आदि बौद्धिक कार्यों को करने वाले समस्त जातकों को निम्न प्रकार बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती का पूजन करना चाहिए।

सर्वप्रथम सूर्योदय के समय उठ कर शरीर को शुद्ध करते हुए स्नान ध्यान करें तथा भगवान भास्कर को जल देने के पश्चात पीले वस्त्र धारण करने के बाद माता सरस्वती को मन में स्थापित करते हुए निम्न मंत्र का 108 बार जब करें अथवा सरस्वती चालीसा का 11 पाठ करें।

ॐ ऐं महासरस्वतये नमः

आज के दिन विद्यार्थियों को अध्ययन से संबंधित वस्तुओं का दान अत्यंत कल्याणकारी फल प्रदान करने वाला सिद्ध हो सकता है।