मंगल दोष की वास्तविकता
ज्योतिष से के प्रति थोड़ी भी जिज्ञासा रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति "मंगल दोष" के विषय मे अवश्य जानता है। उसे यह ज्ञात है कि बालक तथा कन्या के विवाह के पूर्व इस दोष का मिलान अवश्यक होता है। आम जनमानस से लेकर ज्योतिषी तक यह जानते हैं की जन्म कुंडली में जब मंगल प्रथम, चतुर्थ , सप्तम, अष्टम तथा द्वादश भाव में स्थित होता है तो मंगल दोष प्रदान करता है।
इन भाव में बैठकर मंगल, दोष क्यों प्रदान करता है? दांपत्य जीवन पर इसका किस प्रकार प्रभाव पड़ता है ? यह किस प्रकार दांपत्य जीवन के लिए योगकारी अथवा विनाशकारी होता है? इन तथ्यों का वास्तविक कारण अज्ञानता के अभाव में ज्योतिषी से लेकर जनमानस तक नहीं जानते। ज्योतिष जगत में व्याप्त इस अज्ञानता को समाप्त करने हेतु पं राजेश तिवारी ने हजारों जन्मांगो के अध्ययन के बाद इसकी वास्तविक वैज्ञानिकता को अपनी पुस्तक "मंगल दोष का विज्ञान" में स्पष्ट किया है। प्रस्तुत है पुस्तक का कुछ अंश।
मूलतः किसी पुरुष के जन्मांग में जिस प्रकार मंगल पुरुषत्व एवं ऊर्जा का मूल है ठीक उसी प्रकार स्त्री के जननांग में भी उसके हारमोंस तथा कामेच्छा पर सीधा नियंत्रण रखता है। अतः किसी बालक अथवा कन्या के जन्मांग में इसका संतुलन गृहस्थ जीवन की स्वस्थता के लिए प्रथम आवश्यकता के रूप में लिया जाना चाहिए।
भारतीय ज्योतिष में मनीषियों ने मंगल दोष का भेद जानने हेतु भिन्न-भिन्न सूत्रों का प्रतिपादन किया है। इन सूत्रों के अंतर्गत यह पूर्ण स्पष्ट किया गया है कि जन्म कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव में बैठा मंगल, मंगली बनाता है परंतु इन भाव में बैठकर वह मंगल दोष भी प्रदान करता है, यह बिल्कुल असत्य है। इन भाव में बैठकर वह राशिगत अवस्था, लग्न की कारकता, उस पर पड़ने वाले ग्रहों की दृष्टि आदि के अनुसार मंगल दोष कर सकता है तथा नहीं भी कर सकता है। अतः मात्र इन भाव में मंगल की उपस्थिति को मंगल दोष समझ लेना सरासर गलत है ।
इस तथ्य को स्पष्ट करने हेतु मनीषियों ने "मंगल दोष परिहार" नामक अनेक कल्याणकारी सूत्रों का प्रतिपादन भी किया है। लेकिन आजकल ज्योतिषीगण अपने स्वार्थ में मात्र इन भाव में स्थित मंगल को देखकर ही मंगल दोष की भविष्यवाणी कर देते हैं तथा संबंधित व्यक्ति को डरा धमका कर पूजा-पाठ यंत्र, कवच आदि के द्वारा धन अर्जन करने का प्रयास करते हैं।
यहां यह बता देना परम आवश्यक है कि प्रति 100 जातकों में लगभग 42 जातक मंगली होते हैं परंतु इन 42 मंगली जातकों में मंगली दोष मात्र 5 से 6% लोगों में ही होता है। अतः मात्र मंगल को लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव में देखकर मंगली दोष वाला बताना निश्चय ही शास्त्र का निरादर एवं परम असत्य है।